Love Poetry (page 198)
मरहले ज़ीस्त के आसान हुए
बाक़ी सिद्दीक़ी
मरहला दिल का न तस्ख़ीर हुआ
बाक़ी सिद्दीक़ी
ख़बर कुछ ऐसी उड़ाई किसी ने गाँव में
बाक़ी सिद्दीक़ी
कहता है हर मकीं से मकाँ बोलते रहो
बाक़ी सिद्दीक़ी
इस कार-ए-गह-ए-रंग में हम तंग नहीं क्या
बाक़ी सिद्दीक़ी
हम ज़र्रे हैं ख़ाक-ए-रहगुज़र के
बाक़ी सिद्दीक़ी
हर तरफ़ बिखर हैं रंगीं साए
बाक़ी सिद्दीक़ी
एतिबार-ए-नज़र करें कैसे
बाक़ी सिद्दीक़ी
दिल जिंस-ए-मोहब्बत का ख़रीदार नहीं है
बाक़ी सिद्दीक़ी
दाग़-ए-दिल हम को याद आने लगे
बाक़ी सिद्दीक़ी
अपनी धूप में भी कुछ जल
बाक़ी सिद्दीक़ी
आस्तीं में साँप इक पलता रहा
बाक़ी सिद्दीक़ी
यूँ सितमगर नहीं होते जानाँ
बाक़ी अहमदपुरी
उड़े नहीं हैं उड़ाए हुए परिंदे हैं
बाक़ी अहमदपुरी
उदास बाम है दर काटने को आता है
बाक़ी अहमदपुरी
तू नहीं तो तेरा दर्द-ए-जाँ-फ़ज़ा मिल जाएगा
बाक़ी अहमदपुरी
सामने सब के न बोलेंगे हमारा क्या है
बाक़ी अहमदपुरी
मुझ से बिछड़ के वो भी परेशान था बहुत
बाक़ी अहमदपुरी
दश्त-ओ-दरिया के ये उस पार कहाँ तक जाती
बाक़ी अहमदपुरी
बहुत जल्दी थी घर जाने की लेकिन
बाक़ी अहमदपुरी
उल्फ़त में तिरी ऐ बुत-ए-बे-मेहर-ओ-मोहब्बत
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
ख़्वाहिश-ए-सूद थी सौदे में मोहब्बत के वले
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
इश्क़ ने मंसब लिखे जिस दिन मिरी तक़दीर में
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
इश्क़ में बू है किबरियाई की
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
छोड़ कर कूचा-ए-मय-ख़ाना तरफ़ मस्जिद के
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
ऐ इश्क़ तू हर-चंद मिरा दुश्मन-ए-जाँ हो
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
यकसाँ लगें हैं उन को तो दैर-ओ-हरम बहम
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
सीखा जो क़लम से न-ए-ख़ाली का बजाना
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
सैर में तेरी है बुलबुल बोस्ताँ बे-कार है
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
रंग में हम मस से बतर हो चुके
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'