Sad Poetry (page 189)
वाँ रसाई नहीं तो फिर क्या है
ज़फ़र
टुकड़े नहीं हैं आँसुओं में दिल के चार पाँच
ज़फ़र
तुफ़्ता-जानों का इलाज ऐ अहल-ए-दानिश और है
ज़फ़र
रुख़ जो ज़ेर-ए-सुंबल-ए-पुर-पेच-ओ-ताब आ जाएगा
ज़फ़र
क़ारूँ उठा के सर पे सुना गंज ले चला
ज़फ़र
निबाह बात का उस हीला-गर से कुछ न हुआ
ज़फ़र
नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा
ज़फ़र
न दरवेशों का ख़िर्क़ा चाहिए न ताज-ए-शाहाना
ज़फ़र
न दो दुश्नाम हम को इतनी बद-ख़़ूई से क्या हासिल
ज़फ़र
न दाइम ग़म है ने इशरत कभी यूँ है कभी वूँ है
ज़फ़र
मोहब्बत चाहिए बाहम हमें भी हो तुम्हें भी हो
ज़फ़र
मर गए ऐ वाह उन की नाज़-बरदारी में हम
ज़फ़र
लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में
ज़फ़र
क्यूँकर न ख़ाकसार रहें अहल-ए-कीं से दूर
ज़फ़र
क्या कुछ न किया और हैं क्या कुछ नहीं करते
ज़फ़र
क्या कहूँ दिल माइल-ए-ज़ुल्फ़-ए-दोता क्यूँकर हुआ
ज़फ़र
ख़्वाह कर इंसाफ़ ज़ालिम ख़्वाह कर बेदाद तू
ज़फ़र
करेंगे क़स्द हम जिस दम तुम्हारे घर में आवेंगे
ज़फ़र
काफ़िर तुझे अल्लाह ने सूरत तो परी दी
ज़फ़र
जिगर के टुकड़े हुए जल के दिल कबाब हुआ
ज़फ़र
जब कभी दरिया में होते साया-अफ़गन आप हैं
ज़फ़र
इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल
ज़फ़र
इश्क़ तो मुश्किल है ऐ दिल कौन कहता सहल है
ज़फ़र
हम ये तो नहीं कहते कि ग़म कह नहीं सकते
ज़फ़र
होते होते चश्म से आज अश्क-बारी रह गई
ज़फ़र
हिज्र के हाथ से अब ख़ाक पड़े जीने में
ज़फ़र
है दिल को जो याद आई फ़लक-ए-पीर किसी की
ज़फ़र
गालियाँ तनख़्वाह ठहरी है अगर बट जाएगी
ज़फ़र
गई यक-ब-यक जो हवा पलट नहीं दिल को मेरे क़रार है
ज़फ़र
देख दिल को मिरे ओ काफ़िर-ए-बे-पीर न तोड़
ज़फ़र