Sad Poetry (page 190)
भरी है दिल में जो हसरत कहूँ तो किस से कहूँ
ज़फ़र
ज़रूरतों की हमाहमी में जो राह चलते भी टोकती है वो शाइ'री है
बद्र-ए-आलम ख़लिश
क़दमों से इतना दूर किनारा कभी न था
बद्र-ए-आलम ख़लिश
कहीं सुब्ह-ओ-शाम के दरमियाँ कहीं माह-ओ-साल के दरमियाँ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
गौरय्यों ने जश्न मनाया मेरे आँगन बारिश का
बद्र-ए-आलम ख़लिश
दमक उठी है फ़ज़ा माहताब-ए-ख़्वाब के साथ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
चुप थे जो बुत सवाल ब-लब बोलने लगे
बद्र-ए-आलम ख़लिश
आसमाँ पर काले बादल छा गए
बद्र-ए-आलम ख़लिश
अज़ाब होती हैं अक्सर शबाब की घड़ियाँ
बद्र वास्ती
नवेद-ए-सफ़र
बद्र वास्ती
ख़बर शाकी है
बद्र वास्ती
ज़ेहन और दिल में जो रहती है चुभन खुल जाए
बद्र वास्ती
तुम्हारे दिल में जो ग़म बसा है तो मैं कहाँ हूँ
बद्र वास्ती
इक़रार किसी दिन है तो इंकार किसी दिन
बद्र वास्ती
फ़िक्र-ए-अहल-ए-हुनर पे बैठी है
बद्र वास्ती
धानी सुरमई सब्ज़ गुलाबी जैसे माँ का आँचल शाम
बद्र वास्ती
चराग़ों में अँधेरा है अँधेरे में उजाले हैं
बद्र वास्ती
बुरा हो कर भी वो अच्छा बहुत है
बद्र वास्ती
आँखें मेरी क्या ढूँडती हैं
बदनाम नज़र
जो झुक के मिलते थे जलसों में मेहरबाँ की तरह
बदनाम नज़र
हयात ढूँढ रहा हूँ क़ज़ा की राहों में
बदनाम नज़र
दिल-ओ-जाँ के फ़साने क्या हुए सब
बदनाम नज़र
बाग़-ए-दिल में कोई ग़ुंचा न खिला तेरे बा'द
बदनाम नज़र
रौशनी ही रौशनी है शहर में
बदीउज़्ज़माँ ख़ावर
महसूस हो रहा है जो ग़म मेरी ज़ात का
बदीउज़्ज़माँ ख़ावर
कब बयाबाँ राह में आया ये समझा ही नहीं
बदीउज़्ज़माँ ख़ावर
जिसे भी देखिए प्यासा दिखाई देता है
बदीउज़्ज़माँ ख़ावर
जले हैं दिल न चराग़ों ने रौशनी की है
बदीउज़्ज़माँ ख़ावर
है बहुत मुश्किल निकलना शहर के बाज़ार में
बदीउज़्ज़माँ ख़ावर
आग ही काश लग गई होती
बदीउज़्ज़माँ ख़ावर