Sharab Poetry (page 57)
मिज़्गाँ ने रोका आँखों में दम इंतिज़ार से
अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी
का'बा है कभी तो कभी बुत-ख़ाना बना है
अब्दुल्लतीफ़ शौक़
उस की जाम-ए-जम आँखें शीशा-ए-बदन मेरा
अब्दुल्लाह कमाल
बड़ा मुख़्लिस हूँ पाबंद-ए-वफ़ा हूँ
अब्दुल्लाह कमाल
प्यासा मत जला साक़ी मुझे गर्मी सीं हिज्राँ की
अब्दुल वहाब यकरू
ख़ुश-क़दाँ जब ख़िराम करते हैं
अब्दुल वहाब यकरू
इस तरह रुख़ फेरते हो सुनते ही बोसे की बात
अब्दुल वहाब यकरू
मोहतसिब भी पी के मय लोटे है मयख़ाने में आज
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
मय-कदे में इश्क़ के कुछ सरसरी जाना नहीं
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
क्यूँकर न मय पियूँ मैं क़ुरआँ को देख ज़ाहिद
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
फिर आया जाम-ब-कफ़ गुल-एज़ार ऐ वाइज़
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
नीम-चा जल्द म्याँ ही न मियाँ कीजिएगा
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
क्यूँ ख़फ़ा तू है क्या कहा मैं ने
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
दोश-ब-दोश दोश था मुझ से बुत-ए-करिश्मा-कोश
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
बाग़ में जब कि वो दिल ख़ूँ-कुन-ए-हर-गुल पहुँचे
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
मुद्दआ'-ओ-आरज़ू शौक़-ए-तमन्ना आप हैं
अब्दुल मन्नान तरज़ी
ख़्वाब की बस्ती में अफ़्साने का घर
अब्दुल मन्नान तरज़ी
दिल अपना याद-ए-यार से बेगाना तो नहीं
अब्दुल मलिक सोज़
मिरे दिल में है कि पूछूँ कभी मुर्शिद-ए-मुग़ाँ से
अब्दुल मजीद सालिक
मिरे दिल में है कि पूछूँ कभी मुर्शिद-ए-मुग़ाँ से
अब्दुल मजीद सालिक
ख़िरद में मुब्तिला है 'सालिक' दीवाना बरसों से
अब्दुल मजीद सालिक
हम-नफ़सो उजड़ गईं मेहर-ओ-वफ़ा की बस्तियाँ
अब्दुल मजीद सालिक
अब चराग़ों में ज़िंदगी कम है
अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद
ज़बान-ए-होश से ये कुफ़्र सरज़द हो नहीं सकता
अब्दुल हमीद अदम
साक़ी ज़रा निगाह मिला कर तो देखना
अब्दुल हमीद अदम
साक़ी तुझे इक थोड़ी सी तकलीफ़ तो होगी
अब्दुल हमीद अदम
साक़ी मुझे शराब की तोहमत नहीं पसंद
अब्दुल हमीद अदम
मैं मय-कदे की राह से हो कर निकल गया
अब्दुल हमीद अदम
मय-कदा है यहाँ सकूँ से बैठ
अब्दुल हमीद अदम
कहते हैं उम्र-ए-रफ़्ता कभी लौटती नहीं
अब्दुल हमीद अदम