Sharab Poetry (page 56)
किसी नज़र ने मुझे जाम पर लगाया हुआ है
आफ़ताब हुसैन
वतन का राग
अफ़सर मेरठी
वो हमारी सम्त अपना रुख़ बदलता क्यूँ नहीं
अफ़सर माहपुरी
ग़म-ए-हयात के पेश-ओ-अक़ब नहीं पढ़ता
अफ़सर माहपुरी
बड़ा ख़ुशनुमा ये मक़ाम है नई ज़िंदगी की तलाश कर
अफ़रोज़ आलम
हम अहल-ए-नज़ारा शाम-ओ-सहर आँखों को फ़िदया करते हैं
अफ़ीफ़ सिराज
आप ने आज ये महफ़िल जो सजाई हुई है
अफ़ीफ़ सिराज
नश्शा सा डोलता है तिरे अंग अंग पर
आदिल मंसूरी
दरिया की वुसअतों से उसे नापते नहीं
आदिल मंसूरी
जीता है सिर्फ़ तेरे लिए कौन मर के देख
आदिल मंसूरी
गाँठी है उस ने दोस्ती इक पेश-इमाम से
आदिल मंसूरी
मुफ़ाहमत न सिखा जब्र-ए-नारवा से मुझे
अदीम हाशमी
उस को जब कि मिरे अंजाम से कुछ काम नहीं
अदील ज़ैदी
ज़बाँ को हुक्म निगाह-ए-करम को पहचाने
अदा जाफ़री
अगर मेरी जबीन-ए-शौक़ वक़्फ़-ए-बंदगी होती
अबु मोहम्मद वासिल
ज़िंदगी ख़ाक-बसर शोला-ब-जाँ आज भी है
अबु मोहम्मद सहर
इश्क़ की सई-ए-बद-अंजाम से डर भी न सके
अबु मोहम्मद सहर
आज यारों को मुबारक हो कि सुब्ह-ए-ईद है
आबरू शाह मुबारक
शौक़ बढ़ता है मिरे दिल का दिल-अफ़गारों के बीच
आबरू शाह मुबारक
सैर-ए-बहार-ए-हुस्न ही अँखियों का काम जान
आबरू शाह मुबारक
ख़ुदा के वास्ते ऐ यार हम सीं आ मिल जा
आबरू शाह मुबारक
दुश्मन-ए-जाँ है तिश्ना-ए-ख़ूँ है
आबरू शाह मुबारक
आज यारों को मुबारक हो कि सुब्ह-ए-ईद है
आबरू शाह मुबारक
कुछ है ख़बर फ़रिश्तों के जलते हैं पर कहाँ
अबरार शाहजहाँपुरी
धूप चमकी रात की तस्वीर पीली हो गई
अबरार आज़मी
मुक़द्दर में साहिल कहाँ है मियाँ
आबिद मुनावरी
लाला-ज़ारों में ज़र्द फूल हूँ मैं
आबिद मुनावरी
जादा-ए-मय पे गुज़र ख़्वाबों का
अब्दुर रऊफ़ उरूज
पड़े हैं मस्त भी साक़ी अयाग़ के नज़दीक
अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी
पाबंद हर जफ़ा पे तुम्हारी वफ़ा के हैं
अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी