Sharab Poetry (page 55)
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
आशिक़ी में 'मीर' जैसे ख़्वाब मत देखा करो
अहमद फ़राज़
वो ज़माना है कि अब कुछ नहीं दीवाने में
अहमद अता
पहले हम अश्क थे फिर दीदा-ए-नम-नाक हुए
अहमद अता
इक अश्क बहा होगा
अहमद अता
रूठने और मनाने के एहसास में है इक कैफ़-ओ-सुरूर
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
उस ने किया है वादा-ए-फ़र्दा आने दो उस को आए तो
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
कौन है किस का ये पैग़ाम है क्या अर्ज़ करूँ
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
हिंसा के पहले मुझे फिर रुला गया इक शख़्स
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
उन्स अपने में कहीं पाया न बेगाने में था
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
लाख लाख एहसान जिस ने दर्द पैदा कर दिया
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
जान देते ही बनी इश्क़ के दीवाने से
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
बहार आई है फिर चमन में नसीम इठला के चल रही है
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
सू-ए-मय-कदा न जाते तो कुछ और बात होती
आग़ा हश्र काश्मीरी
लैला सर-ब-गरेबाँ है मजनूँ सा आशिक़-ए-ज़ार कहाँ
अफ़ज़ल परवेज़
ख़ुश-क़िस्मत हैं वो जो गाँव में लम्बी तान के सोते हैं
अफ़ज़ल परवेज़
हुस्न हीरे की कनी हो जैसे
अफ़ज़ल परवेज़
गर्द उड़े या कोई आँधी ही चले
अफ़ज़ल परवेज़
पानी शजर पे फूल बना देखता रहा
अफ़ज़ाल नवेद
धनक में सर थे तिरी शाल के चुराए हुए
अफ़ज़ाल नवेद
आँचल में नज़र आती हैं कुछ और सी आँखें
अफ़ज़ाल नवेद
ये बता दे मुझ को मेरे दिल किसे आवाज़ दूँ
अफ़ज़ल इलाहाबादी
सितम की तेग़ पे ये दस्त-ए-बे-नियाम रक्खा
अफ़ज़ाल अहमद सय्यद
पाता नहीं हूँ और किसी काम से लज़्ज़त
आफ़ताब शाह आलम सानी
गो सुध नहीं उस शोख़ सितमगर ने सँभाली
आफ़ताब शाह आलम सानी
आजिज़ हूँ तिरे हाथ से क्या काम करूँ मैं
आफ़ताब शाह आलम सानी
तमीज़-ए-पिसर-ए-ज़मीन व इब्न-ए-फ़लक न करना
आफ़ताब इक़बाल शमीम
तमीज़-ए-फ़र्ज़ंद-ए-अर्ज़-ओ-इब्न-ए-फ़लक न करना
आफ़ताब इक़बाल शमीम
इक चादर-ए-बोसीदा मैं दोश पे रखता हूँ
आफ़ताब इक़बाल शमीम
वो सर से पाँव तक है ग़ज़ब से भरा हुआ
आफ़ताब हुसैन