इफ़्तिख़ार आरिफ़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का इफ़्तिख़ार आरिफ़ (page 6)
नाम | इफ़्तिख़ार आरिफ़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Iftikhar Arif |
जन्म की तारीख | 1940 |
जन्म स्थान | Islamabad |
ये अब खुला कि कोई भी मंज़र मिरा न था
वही प्यास है वही दश्त है वही घराना है
वफ़ा की ख़ैर मनाता हूँ बेवफ़ाई में भी
उमीद-ओ-बीम के मेहवर से हट के देखते हैं
थकन तो अगले सफ़र के लिए बहाना था
तार-ए-शबनम की तरह सूरत-ए-ख़स टूटती है
सुख़न-ए-हक़ को फ़ज़ीलत नहीं मिलने वाली
सितारों से भरा ये आसमाँ कैसा लगेगा
सितारा-वार जले फिर बुझा दिए गए हम
शिकस्ता-पर जुनूँ को आज़माएँगे नहीं क्या
शहर-ए-गुल के ख़स-ओ-ख़ाशाक से ख़ौफ़ आता है
सर-ए-बाम-ए-हिज्र दिया बुझा तो ख़बर हुई
समुंदर इस क़दर शोरीदा-सर क्यूँ लग रहा है
समझ रहे हैं मगर बोलने का यारा नहीं
सजल कि शोर ज़मीनों में आशियाना करे
सब चेहरों पर एक ही रंग और सब आँखों में एक ही ख़्वाब
रविश में गर्दिश-ए-सय्यारगाँ से अच्छी है
मुल्क-ए-सुख़न में दर्द की दौलत को क्या हुआ
मिरे ख़ुदा मुझे इतना तो मो'तबर कर दे
मेरा मालिक जब तौफ़ीक़ अर्ज़ानी करता है
मंज़र से हैं न दीदा-ए-बीना के दम से हैं
मंसब न कुलाह चाहता हूँ
कुछ भी नहीं कहीं नहीं ख़्वाब के इख़्तियार में
कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहजे में
कोई मुज़्दा न बशारत न दुआ चाहती है
कोई जुनूँ कोई सौदा न सर में रक्खा जाए
ख़्वाब-ए-देरीना से रुख़्सत का सबब पूछते हैं
ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है
ख़्वाब देखने वाली आँखें पत्थर होंगी तब सोचेंगे
खज़ाना-ए-ज़र-ओ-गौहर पे ख़ाक डाल के रख