Coupletss of Iftikhar Arif

Coupletss of Iftikhar Arif
नामइफ़्तिख़ार आरिफ़
अंग्रेज़ी नामIftikhar Arif
जन्म की तारीख1940
जन्म स्थानIslamabad

ज़िंदगी भर की कमाई यही मिसरे दो-चार

ज़माना हो गया ख़ुद से मुझे लड़ते-झगड़ते

ये वक़्त किस की रऊनत पे ख़ाक डाल गया

ये तेरे मेरे चराग़ों की ज़िद जहाँ से चली

ये सारी जन्नतें ये जहन्नम अज़ाब ओ अज्र

ये रौशनी के तआक़ुब में भागता हुआ दिन

ये मोजज़ा भी किसी की दुआ का लगता है

ये बस्तियाँ हैं कि मक़्तल दुआ किए जाएँ

ये बस्ती जानी पहचानी बहुत है

यही लौ थी कि उलझती रही हर रात के साथ

यही लहजा था कि मेआर-ए-सुख़न ठहरा था

वो मेरे नाम की निस्बत से मो'तबर ठहरे

वो क्या मंज़िल जहाँ से रास्ते आगे निकल जाएँ

वो जिस के नाम की निस्बत से रौशनी था वजूद

वो हम नहीं थे तो फिर कौन था सर-ए-बाज़ार

वही है ख़्वाब जिसे मिल के सब ने देखा था

वही फ़िराक़ की बातें वही हिकायत-ए-वस्ल

वही चराग़ बुझा जिस की लौ क़यामत थी

वफ़ा की ख़ैर मनाता हूँ बेवफ़ाई में भी

वफ़ा के बाब में कार-ए-सुख़न तमाम हुआ

उसी को बात न पहुँचे जिसे पहुँचनी हो

उमीद-ओ-बीम के मेहवर से हट के देखते हैं

तुम से बिछड़ कर ज़िंदा हैं

तमाशा करने वालों को ख़बर दी जा चुकी है

तमाम ख़ाना-ब-दोशों में मुश्तरक है ये बात

सुब्ह सवेरे रन पड़ना है और घमसान का रन

सितारों से भरा ये आसमाँ कैसा लगेगा

सिपाह-ए-शाम के नेज़े पे आफ़्ताब का सर

शिकम की आग लिए फिर रही है शहर-ब-शहर

शगुफ़्ता लफ़्ज़ लिक्खे जा रहे हैं

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