हमें तो अपने समुंदर की रेत काफ़ी है
तू अपने चश्मा-ए-बे-फ़ैज़ को सँभाल के रख
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सितारों से भरा ये आसमाँ कैसा लगेगा
दिल कभी ख़्वाब के पीछे कभी दुनिया की तरफ़
एक ख़्वाब की दूरी पर
इल्तिजा
यही लहजा था कि मेआर-ए-सुख़न ठहरा था
ख़्वाब-ए-देरीना से रुख़्सत का सबब पूछते हैं
सजल कि शोर ज़मीनों में आशियाना करे
गुमनाम सिपाही की क़ब्र पर
कारोबार में अब के ख़सारा और तरह का है
कुछ देर पहले नींद से
जैसा हूँ वैसा क्यूँ हूँ समझा सकता था मैं
मिरा ख़ुश-ख़िराम बला का तेज़-ख़िराम था