इक़बाल साजिद कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का इक़बाल साजिद (page 2)

इक़बाल साजिद कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का इक़बाल साजिद (page 2)
नामइक़बाल साजिद
अंग्रेज़ी नामIqbal Sajid
जन्म की तारीख1932
मौत की तिथि1988
जन्म स्थानLahore

दरवेश नज़र आता था हर हाल में लेकिन

बगूला बन के समुंदर में ख़ाक उड़ाना थी

बढ़ गया है इस क़दर अब सुर्ख़-रू होने का शौक़

अपनी अना की आज भी तस्कीन हम ने की

अब तू दरवाज़े से अपने नाम की तख़्ती उतार

वो मुसलसल चुप है तेरे सामने तन्हाई में

वो दोस्त था तो उसी को अदू भी होना था

वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा

उस आइने में देखना हैरत भी आएगी

तुम मुझे भी काँच की पोशाक पहनाने लगे

सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा

सूरज हूँ चमकने का भी हक़ चाहिए मुझ को

सरसब्ज़ दिल की कोई भी ख़्वाहिश नहीं हुई

संग-दिल हूँ इस क़दर आँखें भिगो सकता नहीं

साए की तरह बढ़ न कभी क़द से ज़ियादा

रुख़-ए-रौशन का रौशन एक पहलू भी नहीं निकला

प्यासे के पास रात समुंदर पड़ा हुआ

फेंक यूँ पत्थर कि सत्ह-ए-आब भी बोझल न हो

पता कैसे चले दुनिया को क़स्र-ए-दिल के जलने का

मूँद कर आँखें तलाश-ए-बहर-ओ-बर करने लगे

मुझे नहीं है कोई वहम अपने बारे में

मिला तो हादिसा कुछ ऐसा दिल ख़राश हुआ

लगा दी काग़ज़ी मल्बूस पर मोहर-ए-सबात अपनी

ख़ुश्क उस की ज़ात का सातों समुंदर हो गया

ख़ुदा ने जिस को चाहा उस ने बच्चे की तरह ज़िद की

ख़ौफ़ दिल में न तिरे दर के गदा ने रक्खा

ख़त्म रातों-रात उस गुल की कहानी हो गई

कटते ही संग-ए-लफ़्ज़ गिरानी निकल पड़े

कल शब दिल-ए-आवारा को सीने से निकाला

जाने क्यूँ घर में मिरे दश्त-ओ-बयाबाँ छोड़ कर

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