Heart Broken Poetry of Iqbal Sajid

Heart Broken Poetry of Iqbal Sajid
नामइक़बाल साजिद
अंग्रेज़ी नामIqbal Sajid
जन्म की तारीख1932
मौत की तिथि1988
जन्म स्थानLahore

सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा

'साजिद' तू फिर से ख़ाना-ए-दिल में तलाश कर

रोए हुए भी उन को कई साल हो गए

प्यासो रहो न दश्त में बारिश के मुंतज़िर

पढ़ते पढ़ते थक गए सब लोग तहरीरें मिरी

मुझ पे पत्थर फेंकने वालों को तेरे शहर में

मारा किसी ने संग तो ठोकर लगी मुझे

मैं ख़ून बहा कर भी हुआ बाग़ में रुस्वा

मैं आईना बनूँगा तू पत्थर उठाएगा

जैसे हर चेहरे की आँखें सर के पीछे आ लगीं

होते ही शाम जलने लगा याद का अलाव

वो मुसलसल चुप है तेरे सामने तन्हाई में

वो दोस्त था तो उसी को अदू भी होना था

वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा

उस आइने में देखना हैरत भी आएगी

तुम मुझे भी काँच की पोशाक पहनाने लगे

सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा

सरसब्ज़ दिल की कोई भी ख़्वाहिश नहीं हुई

संग-दिल हूँ इस क़दर आँखें भिगो सकता नहीं

साए की तरह बढ़ न कभी क़द से ज़ियादा

रुख़-ए-रौशन का रौशन एक पहलू भी नहीं निकला

प्यासे के पास रात समुंदर पड़ा हुआ

फेंक यूँ पत्थर कि सत्ह-ए-आब भी बोझल न हो

पता कैसे चले दुनिया को क़स्र-ए-दिल के जलने का

मूँद कर आँखें तलाश-ए-बहर-ओ-बर करने लगे

मुझे नहीं है कोई वहम अपने बारे में

मिला तो हादिसा कुछ ऐसा दिल ख़राश हुआ

ख़ुश्क उस की ज़ात का सातों समुंदर हो गया

ख़ौफ़ दिल में न तिरे दर के गदा ने रक्खा

ख़त्म रातों-रात उस गुल की कहानी हो गई

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