किस तौर से किस तरह से क्यूँ कर पाया
दुनिया का न खा फ़रेब वीराँ है ये
बदला नहीं कोई भेस नाचारी से
क़ल्लाश है क़ौम तो पढ़ेगी क्यूँकर
गर नेक दिली से कुछ भलाई की है
दाल की फ़रियाद
तक़रीर से वो फ़ुज़ूँ बयान से बाहर
बरसात
तौहीद की राह में है वीराना-ए-सख़्त
होती नहीं फ़िक्र से कोई अफ़्ज़ाइश
मुलम्मा की अँगूठी
चिड़िया के बच्चे