तेज़ी नहीं मिनजुमला-ए-औसाफ़-ए-कमाल
वाहिद मुतकल्लिम का हो जो मुंकिर
एक वक़्त में एक काम
कैफ़ियत-ओ-ज़ौक़ और ज़िक्र-ओ-औराद
पानी में है आग का लगाना दुश्वार
या-रब कोई नक़्श-ए-मुद्दआ भी न रहे
हम आलम-ए-ख़्वाब में हैं या हम हैं ख़्वाब
कहते हैं जो अहल-ए-अक़्ल हैं दूर-अंदेश
गर रूह न पाबंद-ए-तअ'य्युन होती
मकशूफ़ हुआ कि दीद हैरानी है
है इश्क़ से हुस्न की सफ़ाई ज़ाहिर
ख़ाक नमनाक और ताबिंदा नुजूम