जो चाहिए वो तो है अज़ल से मौजूद
ईद-ए-क़ुर्बां है आज ऐ अहल-ए-हमम
आया हूँ मैं जानिब-ए-अदम हस्ती से
अब क़ौम की जो रस्म है सो ऊल-जुलूल
दुनिया को न तू क़िबला-ए-हाजात समझ
किस तौर से किस तरह से क्यूँ कर पाया
बा-ईं हमा-सादगी है पुरकारी भी
शैतान करता है कब किसी को गुमराह
मजमूआ-ए-ख़ार-ओ-गुल है ज़ेब-ए-गुलज़ार
गर्मी का मौसम
मा'लूम का नाम है निशाँ है न असर
इंसाँ को चाहिए न हिम्मत हारे