दीन और दुनिया का तफ़रक़ा है मोहमल
तौहीद की राह में है वीराना-ए-सख़्त
अक्सर ने है आख़िरत की खेती बोई
होती नहीं फ़िक्र से कोई अफ़्ज़ाइश
ऐ बार-ए-ख़ुदा ये शोर-ओ-ग़ौग़ा क्या है
आजिज़ है ख़याल और तफ़क्कुर-ए-हैराँ
जब तक कि सबक़ मिलाप का याद रहा
कहते हैं सभी मुसदाम अल्लाह अल्लाह
साक़ी ओ शराब ओ जाम ओ पैमाना क्या
किस तौर से किस तरह से क्यूँ कर पाया
इख़्फ़ा के लिए है इस क़दर जोश-ओ-ख़रोश
पानी में है आग का लगाना दुश्वार