मकशूफ़ हुआ कि दीद हैरानी है
ईद-ए-रमज़ाँ है आज बा-ऐश-ओ-सुरूर
ये मसअला-ए-दक़ीक़ सुनिए हम से
बरसात
कछवा और ख़रगोश
ऊँट
हवा और सूरज का मुक़ाबला
दुनिया के लिए हैं सब हमारे धंदे
जिस दर्जा हो मुश्किलात की तुग़्यानी
थोड़ा थोड़ा मिल कर बहुत हो जाता है
है बार-ए-ख़ुदा कि आलम-आरा तू है
है शुक्र दुरुस्त और शिकायत ज़ेबा