गर्मी का मौसम
कहते हैं जो अहल-ए-अक़्ल हैं दूर-अंदेश
अल-हक़ कि नहीं है ग़ैर हरगिज़ मौजूद
मजमूआ-ए-ख़ार-ओ-गुल है ज़ेब-ए-गुलज़ार
क्या कहते हैं इस में मुफ़्तियान-ए-इस्लाम
ऐ बार-ए-ख़ुदा ये शोर-ओ-ग़ौग़ा क्या है
बा-ईं हमा-सादगी है पुरकारी भी
चिड़िया के बच्चे
होती नहीं फ़िक्र से कोई अफ़्ज़ाइश
अब क़ौम की जो रस्म है सो ऊल-जुलूल
ये क़ौल किसी बुज़ुर्ग का सच्चा है
था रंग-ए-बहार बे-नवाई कि न था