किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
एक कम-सिन हसीन लड़की का
इक ज़रा रसमसा के सोते में
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
चंद लम्हों को तेरे आने से
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
रात जब भीग के लहराती है
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में