आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
तितली कोई बे-तरह भटक कर
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
अपने आईना-ए-तमन्ना में
चंद लम्हों को तेरे आने से
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
एक कम-सिन हसीन लड़की का
इक ज़रा रसमसा के सोते में
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
अब्र में छुप गया है आधा चाँद