सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
एक कम-सिन हसीन लड़की का
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
चंद लम्हों को तेरे आने से
इक ज़रा रसमसा के सोते में