हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
अपने आईना-ए-तमन्ना में
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
रात जब भीग के लहराती है
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
चंद लम्हों को तेरे आने से
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में