इक ज़रा रसमसा के सोते में
चंद लम्हों को तेरे आने से
तितली कोई बे-तरह भटक कर
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
एक कम-सिन हसीन लड़की का
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
अपने आईना-ए-तमन्ना में