याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
चंद लम्हों को तेरे आने से
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
एक कम-सिन हसीन लड़की का
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
अपने आईना-ए-तमन्ना में
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़