चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
सर में तकमील का था इक सौदा
उस के और अपने दरमियान में अब
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
साल-हा-साल और इक लम्हा
हर तंज़ किया जाए हर इक तअना दिया जाए
मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से