मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
शर्म दहशत झिझक परेशानी
इश्क़ समझे थे जिस को वो शायद
सर में तकमील का था इक सौदा
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
क्या बताऊँ कि सह रहा हूँ मैं
जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
थी जो वो इक तमसील-ए-माज़ी आख़िरी मंज़र उस का ये था