उस के और अपने दरमियान में अब
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
साल-हा-साल और इक लम्हा
जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
शर्म दहशत झिझक परेशानी
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
हर तंज़ किया जाए हर इक तअना दिया जाए
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम