पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल
जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
वो कसी दिन न आ सके पर उसे
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
शर्म दहशत झिझक परेशानी
पास रह कर जुदाई की तुझ से
उस के और अपने दरमियान में अब
मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
हर तंज़ किया जाए हर इक तअना दिया जाए