जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान
बरसात है दिल डस रहा है पानी
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी