दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
बरसात है दिल डस रहा है पानी