थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
ज़ब्त-ए-गिर्या
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह