ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी