चेहरा-ए-आफ़ाक़ को देती है नूर
और कुछ दैर अभी ठहर जाओ
वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे
एक मुद्दत सितम उठाने पर
ये चमेली की अध-खिली कलियाँ
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
दिन ये बदलेगा रात बदलेगी
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए