फिर किसी बात का ख़याल आया
वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
मुस्कुराया है यूँ तिरा चेहरा
शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त
शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को
आरज़ू है कि अब मिरी हस्ती
दिन ये बदलेगा रात बदलेगी
दिल पे लगते हैं सैकड़ों नश्तर
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल
हाए ये सादगी ओ पुरकारी