ये चमेली की अध-खिली कलियाँ
शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
और कुछ दैर अभी ठहर जाओ
हाए ये सादगी ओ पुरकारी
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
चेहरा-ए-आफ़ाक़ को देती है नूर
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है
वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे
आरज़ू है कि अब मिरी हस्ती