क्यूँ-कर दिल-ए-ग़म-ज़दा न फ़रियाद करे
हर ग़ुंचे से शाख़-ए-गुल है क्यूँ नज़्र-ब-कफ़
ठोकर भी न मारेंगे अगर ख़ुद-सर है
अल्लाह अल्लाह इज़्ज़-ओ-जाह-ए-ज़ाकिर
फ़ुर्सत कोई साअत न ज़माने से मिली
अख़्तर से भी आबरू में बेहतर है ये अश्क
ला-रैब बहिश्तियों का मरजा है ये
बरहम है जहाँ अजब तलातुम है आज
गुलशन में सबा को जुस्तुजू तेरी है
अश्कों में नहाओ तो जिगर ठंडे हों
बे-गोर-ओ-कफ़न बाप का लाशा देखा
दामाद-ए-रसूल की शहादत है आज