अंजाम पे अपने आह-ओ-ज़ारी कर तू
आला रुत्बे में हर बशर से पाया
ऐ बख़्त-ए-रसा सू-ए-नजफ़ राही कर
अश्कों में नहाओ तो जिगर ठंडे हों
राही तरफ़-ए-आलम-ए-बाला हूँ मैं
अल्लाह अल्लाह इज़्ज़-ओ-जाह-ए-ज़ाकिर
हर-चंद कि ख़स्ता ओ हज़ीं है आवाज़
बरहम है जहाँ अजब तलातुम है आज
अख़्तर से भी आबरू में बेहतर है ये अश्क
ऐ ख़ालिक़-ए-ज़ुल-फ़ज़्ल-ओ-करम रहमत कर
बे-जा नहीं मद्ह-ए-शह में ग़र्रा मेरा
थे ज़ीस्त से अपनी हाथ धोए सज्जाद