आज वाँ तेग़ ओ कफ़न बाँधे हुए जाता हूँ मैं
उज़्र मेरे क़त्ल करने में वो अब लावेंगे क्या
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मैं भला कब था सुख़न-गोई पे माइल 'ग़ालिब'
कहूँ जो हाल तो कहते हो मुद्दआ' कहिए
क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना
हूँ गिरफ़्तार-ए-उल्फ़त-ए-सय्याद
अज़-मेहर ता-ब-ज़र्रा दिल-ओ-दिल है आइना
क़तरा-ए-मय बस-कि हैरत से नफ़स-परवर हुआ
रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो
ए'तिबार-ए-इश्क़ की ख़ाना-ख़राबी देखना
नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का
'ग़ालिब' छुटी शराब पर अब भी कभी कभी
न लेवे गर ख़स-ए-जौहर तरावत सब्ज़ा-ए-ख़त से
गंजीना-ए-मअ'नी का तिलिस्म उस को समझिए