गर ख़ामुशी से फ़ाएदा इख़्फ़ा-ए-हाल है
अगर ग़फ़लत से बाज़ आया जफ़ा की
एक हंगामे पे मौक़ूफ़ है घर की रौनक़
की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं
ब-नाला हासिल-ए-दिल-बस्तगी फ़राहम कर
ज़-बस-कि मश्क़-ए-तमाशा जुनूँ-अलामत है
सीखे हैं मह-रुख़ों के लिए हम मुसव्वरी
है पर-ए-सरहद-ए-इदराक से अपना मसजूद
घर जब बना लिया तिरे दर पर कहे बग़ैर
लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर
पिला दे ओक से साक़ी जो हम से नफ़रत है
और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया