Love Poetry of Mirza Ghalib (page 4)
नाम | ग़ालिब |
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अंग्रेज़ी नाम | Mirza Ghalib |
जन्म की तारीख | 1797 |
मौत की तिथि | 1869 |
जन्म स्थान | Delhi |
सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है
सद जल्वा रू-ब-रू है जो मिज़्गाँ उठाइए
सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
रुख़-ए-निगार से है सोज़-ए-जावेदानी-ए-शमा
रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए
रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़
रहा गर कोई ता-क़यामत सलामत
रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इज़्तिराब है
क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना
क़तरा-ए-मय बस-कि हैरत से नफ़स-परवर हुआ
क़फ़स में हूँ गर अच्छा भी न जानें मेरे शेवन को
फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है
फिर इस अंदाज़ से बहार आई
फिर हुआ वक़्त कि हो बाल-कुशा मौज-ए-शराब
पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का
पा-ब-दामन हो रहा हूँ बस-कि मैं सहरा-नवर्द
ओहदे से मद्ह-ए-नाज़ के बाहर न आ सका
नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने
निकोहिश है सज़ा फ़रियादी-ए-बे-दाद-ए-दिलबर की
नवेद-ए-अम्न है बेदाद-ए-दोस्त जाँ के लिए
नक़्श-ए-नाज़-ए-बुत-ए-तन्नाज़ ब-आग़ोश-ए-रक़ीब
नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का
नाला जुज़ हुस्न-ए-तलब ऐ सितम-ईजाद नहीं
नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िये के दर-ख़ुर मिरे तन में
नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच
न लेवे गर ख़स-ए-जौहर तरावत सब्ज़ा-ए-ख़त से
न हुई गर मिरे मरने से तसल्ली न सही
न होगा यक-बयाबाँ माँदगी से ज़ौक़ कम मेरा
न गुल-ए-नग़्मा हूँ न पर्दा-ए-साज़