Love Poetry of Mirza Ghalib (page 2)
नाम | ग़ालिब |
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अंग्रेज़ी नाम | Mirza Ghalib |
जन्म की तारीख | 1797 |
मौत की तिथि | 1869 |
जन्म स्थान | Delhi |
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही
इन आबलों से पाँव के घबरा गया था मैं
हूँ गिरफ़्तार-ए-उल्फ़त-ए-सय्याद
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
हर बुल-हवस ने हुस्न-परस्ती शिआ'र की
हाँ ऐ फ़लक-ए-पीर जवाँ था अभी आरिफ़
है पर-ए-सरहद-ए-इदराक से अपना मसजूद
है ख़याल-ए-हुस्न में हुस्न-ए-अमल का सा ख़याल
है अब इस मामूरे में क़हत-ए-ग़म-ए-उल्फ़त 'असद'
ग़म अगरचे जाँ-गुसिल है प कहाँ बचें कि दिल है
गरचे है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल पर्दा-दार-ए-राज़-ए-इश्क़
गर किया नासेह ने हम को क़ैद अच्छा यूँ सही
ए'तिबार-ए-इश्क़ की ख़ाना-ख़राबी देखना
दोनों जहान दे के वो समझे ये ख़ुश रहा
दिल को नियाज़-ए-हसरत-ए-दीदार कर चुके
दिखा के जुम्बिश-ए-लब ही तमाम कर हम को
दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जाँ-सिताँ नावक-ए-नाज़ बे-पनाह
दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं
चाहते हैं ख़ूब-रूयों को 'असद'
बुलबुल के कारोबार पे हैं ख़ंदा-हा-ए-गुल
बोसा कैसा यही ग़नीमत है
बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह
बे-इश्क़ उम्र कट नहीं सकती है और याँ
बहरा हूँ मैं तो चाहिए दूना हो इल्तिफ़ात
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
आशिक़ हूँ प माशूक़-फ़रेबी है मिरा काम
आँख की तस्वीर सर-नामे पे खींची है कि ता
आए है बेकसी-ए-इश्क़ पे रोना 'ग़ालिब'