जिसे ज़ौक़-ए-बादा-परस्ती नहीं है
मिरे सामने उस की हस्ती नहीं है
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Gulzar
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तुफ़ैल-ए-रूह मिरा जिस्म-ए-ज़ार बाक़ी है
करते हैं चैन बैठे हुस्न-ओ-जमाल वाले
ख़ुद रहम कीजिए दिल-ए-उम्मीद-वार पर
जला कर ज़ाहिदों को मय-कशों को शाद करते हैं
अज़ाँ दे के नाक़ूस को फूँक कर
जवानी की हालत गुज़र जाएगी
बा'द मरने के ठिकाने लग गई मिट्टी मिरी
हुस्न की दिल में मिरे जल्वागरी रहती है
दुनिया का माल मुफ़्त में चखने के वास्ते
दुनिया में यही चोर बनाता है असस को
मुझ सा आशिक़ आप सा माशूक़ तब होवे नसीब
बज़्म-ए-आलम में बहुत से हम ने मारे हाथ-पाँव