हो गए नाम-ए-बुताँ सुनते ही 'मोमिन' बे-क़रार
हम न कहते थे कि हज़रत पारसा कहने को हैं
Gulzar
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वो कहाँ साथ सुलाते हैं मुझे
दीदा-ए-हैराँ ने तमाशा किया
न करो अब निबाह की बातें
शब तुम जो बज़्म-ए-ग़ैर में आँखें चुरा गए
उल्टे वो शिकवे करते हैं और किस अदा के साथ
ग़ैरों पे खुल न जाए कहीं राज़ देखना
तासीर सब्र में न असर इज़्तिराब में
हम समझते हैं आज़माने को
ताब-ए-नज़्ज़ारा नहीं आइना क्या देखने दूँ
अफ़सोस शिकायत-ए-निहानी न गई
तुम मिरे पास होते हो गोया
एजाज़-ए-जाँ-दही है हमारे कलाम को