फिर बहार आई है फिर जोश में सौदा होगा
फिर बहार आई है फिर जोश में सौदा होगा
ज़ख़्म-ए-दैरीना से फिर ख़ून टपकता होगा
बीती बातों के वो नासूर हरे फिर होंगे
बात निकलेगी तो फिर बात को रखना होगा
यूरिशें कर के उमँड आएँगी सूनी शामें
लाख भटकें किसी उनवाँ न सवेरा होगा
जी को समझाएँगे मतवाली हवा के झोंके
फिर कोई लाख सँभाले न सँभलना होगा
कैसी रुत आई हवा चलती है जी डोलता है
अब तो हँसना भी तड़पने का बहाना होगा
टूट जाएगा ये लाचारी-ए-दाएम का फ़ुसूँ
और इस तरह कि जैसे कोई आता होगा
दिल धड़कने की सदा आएगी सूने-पन में
दूर बादल कहीं पर्बत पे गरजता होगा
(528) Peoples Rate This