खावेंगे टाँके ज़ख़्म-ए-सर-ओ-रू पर ऐ तबीब
पर ज़ख़्म-ए-दिल तो हम से सिलाया न जाएगा
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Habib Jalib
Wasi Shah
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
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यूँ चलते हैं लोग राह ज़ालिम
मैं जिन को बात करना ऐ 'मुसहफ़ी' सिखाया
बिन ख़ूँ से लिक्खे कोई होता है नामा रंगीं
इश्क़-ए-फ़ुज़ूँ में मेरे न हो दोस्तो कमी
ख़्वाब था या ख़याल था क्या था
सुम्बुल को परेशान किया बाद-ए-सबा ने
सीने पे मेरे हर दम रखते हैं हाथ ख़ूबाँ
बातों ने उस की हम को ख़ामोश कर दिया है
ज़ेर-ए-नक़ाब आब-गूँ हाए-रे उन की जालियाँ
नज़रों में एक बोसा माँगा था हम ने उस से
नाज़ुक है मेरा शीशा-ए-दिल इस क़दर कि बस
मुवाफ़क़त हो जो ताले की उस की मज्लिस में