मौत से ज़ीस्त की तकमील नहीं हो सकती
रौशनी ख़ाक में तहलील नहीं हो सकती
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मिरी ज़मीं मुझे आग़ोश में समेट भी ले
शब भली थी न दिन बुरा था कोई
इस दाएरा-ए-रौशनी-ओ-रंग से आगे
ज़र्द पत्तों को दरख़्तों से जुदा होना ही था
ख़याल रखना
ख़ेमा-ए-जाँ की तनाबों को उखड़ा जाना था
आसमानों से ज़मीनों पे जवाब आएगा
आसमाँ सूरज सितारे बहर-ओ-बर किस के लिए
दिल को हर गाम पे धड़के से लगे रहते हैं
नाव ख़स्ता भी न थी मौज में दरिया भी न था
अभी कुछ काम बाक़ी हैं