मिरी नुमूद किसी जिस्म की तलाश में है
मैं रौशनी हूँ अंधेरों में चल रहा हूँ अभी
Rahat Indori
Gulzar
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(332) Peoples Rate This
निशाँ किसी को मिलेगा भला कहाँ मेरा
हम तो समझे थे कि चारों दर मुक़फ़्फ़ल हो चुके
इक वहम की सूरत सर-ए-दीवार-ए-यक़ीं हैं
कुछ इस के सिवा ख़्वाहिश-ए-सादा नहीं रखते
नाव ख़स्ता भी न थी मौज में दरिया भी न था
वही रटे हुए जुमले उगल रहा हूँ अभी
ज़र्द पत्तों को दरख़्तों से जुदा होना ही था
रुकूँ तो हुजला-ए-मंज़िल पुकारता है मुझे
ख़्वाब-गाह
ख़ेमा-ए-जाँ की तनाबों को उखड़ा जाना था
अंधे बदन में ये सहर-आसार कौन है