ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई में
ख़ुदा किसी को किसी से मगर जुदा न करे
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इक ऐसा वक़्त भी आता है चाँदनी शब में
निकल कर दैर-ओ-काबा से अगर मिलता न बुत-ख़ाना
गुनगुनाती हुई आती हैं फ़लक से बूँदें
अब तो बे-दाद पे बे-दाद करेगी दुनिया
सूख गई जब आँखों में प्यार की नीली झील 'क़तील'
लेता था जवानी में कभी जिस की पनाह
उफ़ुक़ के उस पार ज़िंदगी के उदास लम्हे गुज़ार आऊँ
हालात के क़दमों पे क़लंदर नहीं गिरता
कैसे कैसे भेद छुपे हैं प्यार भरे इक़रार के पीछे
ज़िंदगी मैं भी चलूँगा तिरे पीछे पीछे
जो भी ग़ुंचा तिरे होंटों पे खिला करता है
दुश्मनी मुझ से किए जा मगर अपना बन कर