बड़ न कह बात को तीं हज़रत-ए-'क़ाएम' की कि वो
मस्त-ए-अल्लाह हैं क्या जानिए क्या कहते हैं
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न बीम-ए-ग़म है ने शादी की हम उम्मीद करते हैं
दिल मिरा देख देख जलता है
दिल से बस हाथ उठा तू अब ऐ इश्क़
न पूछो कि 'क़ाएम' का क्या हाल है
अहल-ए-मस्जिद ने जो काफ़िर मुझे समझा तो क्या
क़िस्सा-ए-बरहना-पाई को मिरे ऐ मजनूँ
ज़ाहिद दर-ए-मस्जिद पे ख़राबात की तू ने
पढ़ के क़ासिद ख़त मिरा उस बद-ज़बाँ ने क्या कहा
कौन सा दिन कि मुझे उस से मुलाक़ात नहीं
सैर उस कूचे की करता हूँ कि जिब्रील जहाँ
दिल को फाँसा है हर इक उज़्व की तेरे छब ने
आतिश-ए-तब ने की है ताब शुरूअ