शैख़-जी आया न मस्जिद में वो काफ़िर वर्ना हम
पूछते तुम से कि अब वो पारसाई क्या हुई
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अब तू ने गुल न गुल्सिताँ है याद
तरफ़ ने बंद किया है हर इक तरफ़ से तुझे
ख़स नमत साथ मौज के लग ले
दुख़्तर-ए-रज़ तो है बेटी सी तिरे ऊपर हराम
गर्म कर दे तू टुक आग़ोश में आ
मिरी नज़र में है 'क़ाएम' ये काएनात तमाम
यूँ तो दुनिया में हर इक काम के उस्ताद हैं शैख़
दिल मिरा देख देख जलता है
अब के जो यहाँ से जाएँगे हम
शब जो दिल बे-क़रार था क्या था
न बीम-ए-ग़म है ने शादी की हम उम्मीद करते हैं
मैं कहा अहद क्या किया था रात