तरफ़ ने बंद किया है हर इक तरफ़ से तुझे
तरफ़ न पकड़े तो तुझ को हैं ले शुमार तरफ़
Anwar Masood
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Jaun Eliya
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वाक़िफ़ नहीं हम कि क्या है बेहतर
है बे-असर ऐसी ही जो अपनी कशिश-ए-दिल
जूँ शीशा भरा हूँ मय से लेकिन
जहाँ को वो लब-ए-मय-गूँ ख़राब रखते हैं
दिल को फाँसा है हर इक उज़्व की तेरे छब ने
देखा है आज राह में हम इक हरीर-पोश
की वफ़ा किस से भला फ़ाहिशा-ए-दुनिया ने
आतिश-ए-तब ने की है ताब शुरूअ
क़िस्सा-ए-बरहना-पाई को मिरे ऐ मजनूँ
तेरी ज़बाँ से ख़स्ता कोई ज़ार है कोई
जिस मुसल्ले पे छिड़किए न शराब
पहले ही गधा मिले जहाँ शैख़